कर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्‍टी होना या उल्‍टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं।

कान के प्रत्येक अंग की सामूहिक ठीक क्रिया के द्वारा मनुष्य ठीक प्रकार से सुनता है। इन अंगों में से कान के पर्दे से लेकर मध्य कर्ण एवं अंतःकर्ण के अंगों में विकार होने पर विभिन्न प्रकार की श्रवणहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है।

कान से मवाद आने को मरीज गंभीरता से नहीं लेता, इसे अत्यंत गंभीरता से लेकर विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श एवं चिकित्सा अवश्य लेना चाहिए

यह कभी-कभी गंभीर व्याधियों जैसे मेनिनजाइटिस एवं मस्तिष्क के एक विशेष प्रकार के कैंसर को उत्पन्न कर सकता है।

कान में मवाद किसी भी उम्र में आ सकता है, किंतु प्रायः यह एक वर्ष से छोटे बच्चों या ऐसे बच्चों में ज्यादा होता है जो माँ की गोद में ही रहते हैं। तात्पर्य स्पष्ट है जो बैठ नहीं सकते या करवट नहीं ले सकते।

कान से मवाद आने का स्थान मध्य कर्ण का संक्रमण है। मध्य कर्ण में सूजन होकर, पककर पर्दा फटकर मवाद आने लगता है। मध्य कान में संक्रमण पहुँचने के तीन रास्ते हैं

जिसमें 80-90 प्रश कारण गले से कान जोड़ने वाली नली है। इसके द्वारा नाक एवं गले की सामान्य सर्दी-जुकाम, टांसिलाइटिस, खाँसी आदि कारणों से मध्य कर्ण में संक्रमण पहुँचता है

कर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्‍टी होना या उल्‍टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं